मंगला-ऐक्सप्रेस
नेत्रों पर सपनो के परदे गिरे हैं, कुछ सुखमय कुछ रुलाने वाली,
सभी को हम सीने से लगाए, हर याद लोम-लुभा रही है.
"यात्रीगण ध्यान दें, अर्नाकुलम से चलकर, हजरत निजामुद्दीन को जाने वाली,
लक्ष्यद्वीप-मंगला ऐक्सप्रेस, प्लेटफोर्म पर आ रही है."
शब्दों की पराकाष्ठा में बंधकर, इसे कैसे परिभाषित कर दूँ?
विचार-मात्र से जो भावनाएं उमड़ीं, उन्हें कैसे निष्काषित कर दूँ?
बच्चों की ये छुक-छुक गाड़ी, साहित्यकारों ने लौह-पथ गामिनी सुझाया,
'बहुजन सुखाय-बहुजन हिताय', मेरे अंतर्मन को 'हृदय-कामिनी' लुभाया.
डेढ़-सौ वर्षों से लगातार, प्यारे स्वदेश भारत का भाग्य ढोये,
इसके डिब्बे अनेकता में एकता के परिचालक, एक सूत्र में मानों मोती पिरोये.
मंगला के इतिहास से तो परिचित नहीं, पर इससे जुड़ी हमारी आस का अंदेशा है,
स्टेशन की निस्तब्धता को भेदती उसकी सीटी, हमारे वास्ते जैसे किसी ख़ास का संदेशा है.
विचारों की इन झलकियों के मध्य, टूटा हुआ तन लघु झपकियाँ ले रहा था,
व्यस्तम दिन के पश्चात, थकावट का सुरूर असावधान तन को थपकियाँ दे रहा था.
'मंगला' आगमन की सूचना सुनी तो मारे हर्ष के कंठ अवरुद्ध हो गया,
उसके आने से धुल उठी तो स्वांगन धरा की गंध से हृदय शुद्ध हो गया.
गति से उत्पन झोकों ने स्पर्श किया तो स्मृति में माँ का लाड़ आया,
मित्रों ने सचेत किया तो जाने कहाँ से भ्रात-प्रेम उमड़ आया.
सामान यथास्थान रखा, फिर जब नयन नवीन वातावरण के कुछ अभ्यस्त हुए,
देखा, असबाब की किसे चिंता थी, सब साथी शय्या पर जा पस्त हुए.
प्रात: परीक्षा, फिर सामान-संचय की वर्जिश, अब स्वयं पर ही कहाँ वश था,
अपना उत्साह बांचने को तत्पर, मैं भी चिर-निंद्रा में डूबने को विवश था.
स्वप्न लोक से मित्रों ने निकाला और मैं नया नाम 'शेखचिल्ली' पा गया,
मैं नहीं मानता पर सब कहते हैं, उठते ही पूछा - "दिल्ली आ गया?".स्टेशन पर सभी ने कहकहे लगाए तो लज्जा से मैं लाल हुआ, सब इन्द्रियाँ अब सचेत थीं,
भोपुओं ने भेद बताया, सर्वदा की भांति 'मंगला रानी' निर्धारित समय से एक घंटा लेट थीं.
- 2003
(For 4 years in Manipal during engg., Mangla-Express was the favorite mode of transport for all the students travelling to Delhi, & nearby towns!)
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