Thursday, August 25, 2011

From the Archives - 6 (बयाँ-ए-दास्ताँ-ए-दिल)

                 बयाँ-ए-दास्ताँ-ए-दिल

कुछ कह ना सके, हमें शर्मो-हया ने रोका,
कागज़ के पुर्जों पर भी ये बयाँ ना होगा,
जो इशारे किये वो शायद नाकाफी थे,
नज़रों पर भी ज़माने के परदे हावी थे.

पर ये मुमकिन नहीं तुझे देख कर मेरी धड़कनों का बढ जाना तुझे महसूस नहीं हुआ,
मेरी हर सांस सिर्फ तुझे ही पुकारे मेरा नाम फिर भी तेरे दिल में महफूज़ नहीं हुआ, महफूज़ नहीं हुआ..

-2003

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