Monday, December 6, 2010

हकीक़त

"उड़ने की मनाही नहीं है यहाँ,
ये दीवारें इतनी तंग भी नहीं.
तुम तो फिर भी खुशनसीब हो,
कितनो के पास तो पंख भी नहीं."

[शायद पंखों की मोहताज़ ही नहीं,
उड़ानें ख्वाहिशों के दम पर भरते हैं.
हम दीवारों को कोसते रह गए,
और ये दरीचे हम पर हँसते हैं. ]

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